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Poems

इंतज़ार

इंतज़ार

दिल में रिहाइश लेके बसा है जो नहीं है, पर है यहीं-कहीं। दूर होकर भी सपनों से जुड़ा है याद आने लगा है, जो कभी बिछ्ड़ा ही नहीं।

अच्छा लगता है

अच्छा लगता है

यूँ तो अंधेरे से कोई बैर नहीं पर आकाश की गगरी से छलकती सुनहरी धूप की बारिश में गीला होना अच्छा लगता है। मन की व्याकुलता स्वभाविक है फिर भी