ज़िंदगी

 कभी हम हंसने चले और आँसू बह गए,

 क्यों इतने दु:ख मिले, सोचते ही रह गए |

 पर ज़िंदगी इतनी भी दु:खदायी नहीं होती,

 कभी वो मुस्कुराहट है, हमेशा आँसू नहीं होती |

 कभी हम फ़िसले, तो कभी संभल गए हम,

 कभी  चोटों से तर-बतर हो कर रह गए हम |

 पर ज़िंदगी इतनी भी दूर्लभ नहीं होती,

 कभी वो मरहम है, हमेशा दर्द नहीं होती |

 कभी अन्याय हुआ, तो कभी अपमान सह गए हम,

 कभी बदले की आग में झुलस गए हम |

 पर ज़िंदगी इतनी भी तनह नहीं होती,

 कभी वो दोस्त है, हमेशा दुश्मन नहीं होती |

 फूल तोड़ना चाहते थे, कांटे भी साथ मिल गए,

 इस अनोखे संजोग को समझ नहीं पाये हम |

 पर ज़िंदगी इतनी भी कठोर नहीं होती,

 कभी वो फूल है, हमेशा कांटे नहीं होती |

 नियति का लेखा-जोखा कभी राज़ नहीं आया,

 “क्यों हुआ? कैसे हुआ?” यह गणित ही समझते रह गए हम |

 पर ज़िंदगी इतनी भी कठिन नहीं होती,

 कभी वो संघर्ष है, हमेशा किस्मत नहीं होती |

 कभी सूरज की खोज में निकले थे,

 धूप के पीछे चलते – चलते शाम हो गयी |

 पर ज़िंदगी इतनी भी असाध्य नहीं होती,

 कभी वो रास्ता है, हमेशा मंज़िल नहीं होती |

 ऐ दोस्त! माना तेरा लहू बह रहा,

 कोशिशें कर-कर के कुछ हाथ नहीं लगा |

 पर ज़िंदगी का साथ यूँ न छोड़,

 कभी वो भी शर्मिन्दा है, हमेशा बेवफ़ा नहीं होती |

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