बेखबर

एक दिन जब व्याकुल हुआ मन,

सोचा, आराम से बैठकर सोचूँ और खोजूँ कारण |

विचलित हृदय से प्राप्त हुआ एक नया संदेश,

जब सोचा, हुआ ही क्यों आज कलेश |

मन मे बसा हुआ बैर और निराशा किसी पर उड़ेल दिया,

और क्रोध शांत होने पर ‘माफ़ कीजिएगा’ बोल दिया |

पर अशांति के भवर में डूबी मै नहीं हूँ अकेली,

परेशानियों के चक्रव्यूह में उलझी है हर किसी की ज़िंदगी जैसे पहेली |

हर जगह है कोई न कोई परेशानी,

एक मनुष्य की दूसरे से रंजिश की कथा पुरानी |

कहीं माँ-बाप को ही कर देती है संतान बेघर,

तो कहीं नन्हें बच्चे को पीटा जाता है शराब पीकर |

कहीं बहू के साथ होता है अत्याचार,

तो कहीं तलाक पर चल रहा है सोच-विचार |

कहीं कोई है दु:खी बेटी को करके विदा,

तो कहीं कोई कर रहा है प्रेमी जोड़े को जुदा |

ओर कोई नहीं, हम एक-दूसरे को ही दे रहे हैं कष्ट,

जबकि सभी खुश चाहते हैं रहना, है स्पष्ट |

ऐसे में हर किसी से कर भी नहीं सकते निवेदन,

कि वे रहें शांत चित्त और सदैव करें हमारा अभिनंदन |

तो क्या होना चाहिए समस्या का निवारण,

कि मिट जाएँ समस्त दुखों के जो भी हों कारण |

एकांत में, और कुछ अँधेरे में किया खुद से ये सवाल,

और जब ढूंढा जवाब तो उजागर हो उठा एक नया खयाल |

कि हर कोई एक दूसरे को कोस रहा,

चाहे क्यों न, खुद का ही हो दोष रहा |

क्या कभी प्राप्त हुआ है कुछ, किसी ओर को दोष देकर,

छोड़ो द्वेष और केवल खुद को करो बेहतर |

अपनी खुशियों के लिए न रहो किसी पर निर्भर,

स्वयं को ही सवारना, है कर्तव्य अपना, क्यों हैं सब बेखबर |

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