कहता है मेरा मन
कहता है जहान कि तेरा कोई किनारा नहीं
तेरे अंदर न कोई ज्वलंत रोशनी है,
इस गरदिश का तू सितारा नहीं |
कहता है हमदर्द कि तेरा साथ गवारा नहीं,
तेरी आग कहीं मुझे जला न दे,
मैं तेरा परवाना नहीं |
कहता है परिवार कि तू हमारा नहीं,
तालीम के ख़िलाफ़ बेपरवाह कदम बढ़ा रहा,
तेरे जैसा कोई आवारा नहीं |
कहता है यार कि मैं तेरा सहारा नहीं
तेरी ही उलझने है, तू ही सुलझा
तुझपे कीमती वक़्त अपना गवाना नहीं |
पर कहता है मेरा मन…कि तू लाचारा नहीं
सबकी सुन रहा है तो मेरी भी सुन ले,
कि तुझसा कोई प्यारा नहीं |
निश्चित ही फ़तह होगी सब्र कि तेरे
नहीं तो सहनी होगी बुज़दिली की हार,
जो अपना बिखरा आशियाना सवाँरा नहीं |
चाहे न मिला तुझे यार, प्यार या परिवार
या फ़िर छोड़ दिया किसी ने बीच मझधार
पर तू खुद से तो कभी पराया नहीं |
जो जलती जा रही है भीतर तेरे
रहने दे उस सबल अग्नि को बरक़रार
क्योंकि…किसी के लिए अपने सपनो को भुलाना नहीं |