प्रेरणा

न तुझे खोने का ग़म था

न पाने की चाह

न कोई सपना रहा ऐसा

तुझसे जुड़ा हो जैसा ।

 

तेरे बगैर भी

ज़िंदगी तो चल ही रही थी

फ़िर भी न जाने क्यों

कुछ कमी सी खल रही थी ।

 

तेरी याद भी नहीं

तेरा साथ भी नहीं

पर तू जहाँ है, खुश है

इतना ही मानो, बहुत था यकीन ।

 

जो असलियत से परे रहा

और वक़्त ने भी जो न बदला

वो एक रिश्ता ही है अपना

जैसे मानो एक सुंदर सपना ।

 

तुमसे मिलकर अब मैने जाना

वो बेचैनी कि वजह तुम थे

बिन तेरे क्या सपने पूरे होते

जब हमेशा से मेरी प्रेरणा ही तुम थे

मेरी प्रेरणा ही तुम थे ।

Bharti Jain
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