सारथी
तू सारथी इस जीवन रथ का
कदम तुझी को बढ़ाना है |
उठ चल, न छोड़ हिम्मत को,
तू खुद ही तेरा सहारा है |
तू पंछी अपने गगन का
किसके लिए तू बैठा है ?
उड़ चल, न बाँध तू खुद को,
आसमा ही तेरा आशियाना है |
तू पानी अपनी नदी का
किसके लिए तू ठहरा है ?
बह चल, न रोक यूँ खुद को,
सागर ही तेरा तराना है |
तू फ़ूल अपनी बगिया का
किसके लिए तू मुरझाया है ?
खिल चल, न सिमट तू दुःख में,
खुशबू ही तेरा फसाना है |
तू दीवाना अपने ख्वाबों का
किसके लिए तू टूटा है ?
झूम चल, न हो निराश तू,
सपने ही तेरा बसेरा है |
कोई बाहरी शक्ति नहीं ऐसी
तुझको जो रोक सके |
लड़ना होगा तुझको खुद से,
हर आपत्ति के तले |
तू दीवार अपने रास्तों की
दुनिया के विचारों को साजे है |
ढह चल, पर न मोड़ खुद को,
तू खुद दुश्मन जब तेरा है ||
Bharti Jain