तू न मिले कभी
हर रास्ता तुझ तक लेके आ रहा
फिर भी तू न मिले कभी ।
धूप है हर मोड़ पर बिखरी
छाँव का कोई ठिकाना नहीं ।
ऐ शाम ए मुसाफिर रोशनी संग लाना
मेरे अंधेरो से बेफिक्र हैं बाकी सभी ।
अलक राग अपने सुरों का बरसाना
कि मेरा सूनापन मिट जाए तभी ।
बहुत-सी खुशियाँ बाकी हैं संग जीने को
पर ये फिसलता वक़्त थमता ही नहीं ।
क्यों दूर है मुझसे अब तक
ज़िन्दगी अकेले ही न कट जाए कहीं ।
बारीश की बूंदे तेरे सपनो की फुहार है
आके लिपट जा मुझसे यूँही ।
तुझ संग वादा किया जीने का है
ज़रा मेरा बन जा एक बार सही ।
वफ़ा की है, दुआ दी है
फिर क्यों बन बैठा तू एक अजनबी ।
तेरी कमी है, बेसब्री मेरी
फिर भी तू न मिले कभी ।
…तू न मिले कभी ।।