तू न मिले कभी

हर रास्ता तुझ तक लेके आ रहा

फिर भी तू न मिले कभी ।

धूप है हर मोड़ पर बिखरी

छाँव का कोई ठिकाना नहीं ।

ऐ शाम ए मुसाफिर रोशनी संग लाना

मेरे अंधेरो से बेफिक्र हैं बाकी सभी ।

अलक राग अपने सुरों का बरसाना

कि मेरा सूनापन मिट जाए तभी ।

बहुत-सी खुशियाँ बाकी हैं संग जीने को

पर ये फिसलता वक़्त थमता ही नहीं ।

क्यों दूर है मुझसे अब तक

ज़िन्दगी अकेले ही न कट जाए कहीं ।

बारीश की बूंदे तेरे सपनो की फुहार है

आके लिपट जा मुझसे यूँही ।

तुझ संग वादा किया जीने का है

ज़रा मेरा बन जा एक बार सही ।

वफ़ा की है, दुआ दी है

फिर क्यों बन बैठा तू एक अजनबी ।

तेरी कमी है, बेसब्री मेरी

फिर भी तू न मिले कभी ।

…तू न मिले कभी ।।

Bharti Jain
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