तन्हाई का सफ़र
संग तुम्हारे जो लम्हे जिये
यादों में बस उनको रखना होगा
तुम बिन ये सफ़र आसान न होगा
न कोई और अब अपना होगा
हँसती है जो अपनी तन्हाई
तो संग उसके भी हँसना होगा
तुमने जो कोई कदर न की
अब खुद से मुझे ही संवरना होगा
सपने जो तिनके-से बिखर चुके हैं
एक-एक कर उनको फ़िर से सहेजना होगा
उजड़ा वजूद एक बार फिर बनाने को
दुनिया की भीड़ में कहीं खो जाना होगा
शाम को जब तन्हाई की आवाज़ होगी
बंद आँखों से नींद में सो जाना होगा
फिर भी आँखे मूँदे तुम जो दिख भी जाओ
झूठा सपना समझ उसे भूल जाना होगा
सवाल बेवफ़ाई पर क्योंकि मन में उठेंगें
तुम्हारी याद में कुछ आंसू भी छलकेंगें
न तुम कभी आओगे न ये इंतज़ार खत्म होगा
फिर भी इन आंसुओं को पोछ मुझे मुस्काना होगा |