इश्क़ – लैला की ज़ुबानी

मजनू के जाने पर लैला के दिल का आलम कुछ इस तरह बयां होता है कि सूनी राहों पे चलते – चलते वो अपने आप से कहती है

धुंधली-सी उसकी तस्वीर ही तो बस अपनी थी,

मिट गयी वो भी जैसे ही आँखें झपकी थी |

लाखों में वो एक ही दिल का टुकड़ा-सा मिला था,

उजड़ गया वो चमन कुछ पलों के लिए जो खिला था |

 

उसी समय एक आवारा मुसाफ़िर लैला से मुखातिब होता है

क्यों ये ज़िन्दगी उस फ़क़ीर के नाम बर्बाद करती हो,

हम भी तुम्हारे हुस्न के परवाने हैं,

क्यों दुःख  में उसके, यूँ आहें भरती हो ?

लैला जवाब देती है

उन्होंने हमारे हुस्न कि कभी तारीफ़ न की ,

मन ही मन इस बात से हम नाराज़ थे,

पर उनसे मिले तो मालूम हुआ,

नज़रों में उनकी हमारी खूबसूरती के बखान थे |

 

आशिक़ लैला की तरफ रूख़ करते हुए उसकी दुःखभरी हालात देखकर कहता है

जो चला गया वो एक बेमाना  सपना था,

हमसे मिलोगे तो भूल जाओगे जो अब तक अपना था |

 

पर पागल लैला ज़ोर से हँसते हुए कहती है

नजाने कहाँ चला गया मेरा दिलबर, मेरा रहगुज़र ,

एक अजनबी कह रहा है एक बार हमसे बात कर !

 

ऐसे नहीं उतरेगा ये जो प्यार का नशा है,

उसके दिल ने मेरे दिल को इस कदर छुआ है,

 

की ये सज़ा भी जैसे प्यार का मज़ा है,

बाकी सब तो बस छलावा है, धुआँ है |

 

व्यक्ति टिपण्णी करते हुए कहता है

क्या अंदाज़ हैं आपकी उल्फ़त के सुब्हानल्लाह!

दिल की बाज़ी भी जीत ले गए वल्लाह वल्लाह !!

 

तो अब लैला का जवाब सुनिये…

दिल के टूटने की आवाज़ मेज़बानों की तालियों में कहीं खो गयी,

दूर वो कहीं चला गया और मैं हमेशा के लिए उसकी हो गयी |

 

बहुत खूब!

माना हम अजनबी हैं, मिलके बिछड़ जायेंगें,

मजनू को भी हम न ढूंढ पायेंगें,

पर अपने दिल की बात जो हमसे कह दोगी,

तो इस प्रेम कहानी के अंश अपने संग ले जायेंगें |

 

तो हुआ कुछ ऐसा है

वो नजाने कहाँ गायब हो गए हैं,

और हम उनकी यादों में खोये बैठें हैं,

कहते हैं लोग की कोई और उनकी बाहों में है,

पर वो हैं की अब तक हमारी निगाहों में बैठें हैं |

 

उँगलियाँ उठने लगी हैं मेरे इश्क़ के अफ़साने पे,

जो कहकर हँसती मेरे मजनू को बेवफ़ा है,

जीती है जो दुनिया झूठे सुखों के पैमाने पे,

जीत नहीं पीयेगी इश्क़-ए-इम्तेहां के आज़माने पे |

 

ये दुनिया ढूंढ रही कहती जिसे ईश्वर या अल्लाह है,

मुझे तो इनायत का फ़लसफ़ा भी मजनू के इश्क़ से ही मिला है,

मेरा भगवान खुद मुझे ही भगवान बना देता है

जब वो कहता है हमसफ़र भगवान का दूसरा रूप होता है |

 

सिर्फ़ मजनू ने ही इन आँखों की गहराइयों को पढ़ा है,

दुनिया के चेहरे पर तो खूबसूरती का चश्मा चढ़ा है |

(एक बात कहूँ, उनसे मत कहना…)

इसलिए ही हमे उनसे प्यार बड़ा है ||

 

अजनबी अपनी नम आँखों को छिपाते हुए मुस्कुरा कर चला आता हैऔर लैला फ़िर से सूनी राहों पे चलते – चलते कहती जाती  है

वो कुछ मोहलत के लिए दूर क्या चला गया,

हम को ज़िन्दगी के लिए शायर बना गया |

न जाने अब कब मिलना हो मेरे मेहबूब से,

जो जुदाई में जीना सिखाकर मेरे और करीब आ गया |

 

Bharti Jain
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