अधूरी मंज़िल

छोड़ आई थी जिन रास्तों को

नजाने कैसे उनसे मुलाकात हो गई।

कभी न मिलने का वादा किया था जिससे

नजाने कैसे उनसे बात हो गई।

उसी पुरानी दुकान पर चाय पीने का मन किया

जब अचानक से बरसात हो गई।

क्या पता था कुछ दूरी पर ही

उनकी भी गाड़ी आज खराब हो गई।

वक़्त का फेर बहुत बदलाव ले आया

एक लाठी अब उनका सहारा बन गई।

काले बाल भी अब सफ़ेद हो चुके

पर उनकी आंखों से मैं उन्हें पहचान गई।

वो नज़रें इस कदर चुराते हमसे

मानो कोई दुःख वो छिपा ले गई |

मेरे भी झलक ही आये आँसू

कुछ यादें पुरानी जब ताज़ा हो गई |

वो पुराने दिन भी बड़े चंचल थे

जो नटखट दोस्ती भी प्यार बन गई

न मैं इकरार-ए-मोहब्बत कर सकी

उनकी भी अनकही बातों से अनजान रह गई |

क्यों वो न रुक सके कुछ देर और

या मेरी चिट्ठी पहुँचने से पहले ही कहीं खो गई।

अब वो किसी और के होने वाले थे

इसलिए उन यादों से दूर मैं चली आई।

आज बीस साल हो चले हैं

आखिर वो ख्याली तस्वीर जवां हो गई।

देख रही हूँ ध्यान नही रखते अपना

चेहरे पर कितनी कमज़ोरी आ गई।

मन किया की घर ले चलूँ साथ उन्हें

हाथों से अपने एक बार उन्हें खिलाऊँ।

पर पुरानी बातें व्यर्थ ही जवान हो जाएंगी

इस एक खयाल से मैं डर गई।

समय आ गया फिर उनसे दूर जाने का

कुछ देर में ही दोपहर से शाम हो गई।

पर घर पे राह देखने वाला कोई नहीं

पूरी उम्र जो उनकी यादों में खर्च हो गई।

Bharti Jain
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